चेले और शागिर्द

रविवार, 29 दिसंबर 2013

खून सने हाथ और 'कमल' रहा थाम !!!!!!!


[context-Rajnath compares BJP's PM nominee to Ram]
अधर्म-रथ को ले चला सारथी बेईमान ,
सत्ता के लिए मचलता सारथी बेईमान !
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सत्ता की है ख्वाहिश बेचते ईमान ,
रावण नज़र आता इन्हें भगवान श्री राम !
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है अहम् इस बात का हम चालबाज़ हैं ,
इनके लबों पर नाचती कितनी कुटिल मुस्कान !
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करने लगा राज का ही नाथ पथभ्रष्ट ,
कंस को कहकर कृष्ण कर रहा बदनाम !
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ये नहीं चाहते रहें मिलजुल के हम इस मुल्क में ,
इनको नज़र आते हैं हम हिन्दू व् मुसलमान !
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क़त्ल कर के बेगुनाह का काट कर इंसानियत ,
खून सने हाथ और 'कमल' रहा थाम !!!!!!!
शिखा कौशिक 'नूतन'
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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

''हाकिम तो मसरूफ है !''

सैफई महोत्सव का शानदार आगाज
जिस दिन से सत्ता पाई है हाकिम तो मसरूफ है ,
हैं दीदार बहुत ही मुश्किल हाकिम तो मसरूफ है !
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पेट पिचककर लगा कमर से ज़ालिम कितनी भूख है ,
किसे पुकारें हाथ उठाकर हाकिम तो मसरूफ है !
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खींच खींच कर एक चिथड़े से बदन ढक रही बहनें हैं ,
आप बचा लो अपनी अस्मत हाकिम तो मसरूफ है !
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दूध दवा पानी को तरसें नन्हें मुन्ने बिलख बिलख ,
मरते हैं तो मर जाने दो हाकिम तो मसरूफ है !
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बिल्कुल नहीं मिटेगा ऐसे दर्द गरीबों का 'नूतन' ,
जब तक सत्ता मद में डूबा हाकिम तो मसरूफ है !

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

''आप'' को अलका मुबारक हो !

alka lamba lashes out on congress and rahul gandhi
कभी दूरदर्शन पर अलका लम्बा जी को कॉंग्रेस के समर्थन में विपक्षियों से जोरदार बहस करते देखा था और आज उनके कॉंग्रेस छोड़कर ''आप पार्टी' में शामिल होने की खबर पढ़ी और पढ़ा साथ ही उनका बयान कि -''"मैंने कई बार राहुल गांधी से मिलने की कोशिश की। पिछले तीन साल से मैं यहीं कर रही थी। कई चिट्ठी भी लिखीं, लेकिन किसी ने इस पर गौर नहीं किया।" आखिर क्यों एक पार्टी छोड़ते ही इस तरह के व्यर्थ बयान दिए जाते हैं .आप शालीनता के साथ छोड़ दीजिये यदि आप को किसी पार्टी में घुटन महसूस होने लगी है तो ....पर पार्टी छोड़ते ही उस पार्टी के नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करना कहाँ तक उचित है ? ये केवल अपने इस कदम को न्यायोचित ठहराने का एक प्रयास मात्र है कि हम तो पार्टी के बहुत वफादार थे पर नेतृत्व ही हमारी उपेक्षा करता रहा ....क्यूँ देते हैं इतने सस्ते बयान ! वास्तविकता से सब रुबरु हैं ...आप अवसरवादी हैं जिस पार्टी को सत्ता में आते देखते हैं उसकी ओर दौड़ लेते हैं और तुर्रा ये कि ''टीवी चैनल से बातचीत में अलका ने कहा, "मेरे लिए देश सबसे पहले है, देश की जनता सबसे पहले है। लेकिन इस बात का अफसोस रहेगा कि पिछले 15 साल मैं कांग्रेस के लिए काम करती रही, जबकि मुझे उसे देश के लिए खर्च करना चाहिए था।" आप जाइये ...शौक से जाइये पर गरिमा के साथ जाइये ...अपने हितों को देश-सेवा का नाम न दें ....राहुल जी को कटघरे में खड़ा न करें जो इंसान दिन-रात देश की समस्याओं के समाधान के लिए खुद के सपनों को तिलांजलि दे सकता है उस पर आपके द्वारा लगाये गए इल्जाम आपको केवल गद्दार के श्रेणी में खड़ा कर सकते हैं -
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नहीं वे अपने जो साथ छोड़ देते हैं ,
पाने को ताजमहल घर अपना छोड़ देते हैं !

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आते जिसके सहारे गद्दार साहिलों तक ,
पार आते ही कश्ती खुद ही डुबों देते हैं !

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बड़े मासूम बनकर तोहमतें लगाते हैं ,
मिलते ही मौका छुरा आप घोंप देते हैं !
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हर एक घर में पल में रहे हैं सांप ज़हरीले ,
दूध पीते हैं और डंक चुभो देते हैं !
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खेलकर जिसमे बड़े होते हैं बच्चे 'नूतन'
नया घर लेने को उसे आप बेंच देते हैं !

शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 15 दिसंबर 2013

”आप” या ”नक्सलवाद का नवीन संस्करण’

aam-aadmi-party
नयी पार्टी जिसकी जीत में कुछ राजनैतिक विश्लेषकों को ''नई राजनीति ' की गुलाबी सुगंध आ रही है यदि उसकी कार्यविधियों व् भाषणों का गहराई से अध्ययन किया जाये तो उसमे भी वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का वही प्रतिशोध नज़र आता है जो दशकों से नक्सलवाद के रूप में फल-फूल रहा है .
ये ईमानदार है ,ये शोषितों के खैरख्वाह है बिलकुल नक्सलवादियों की तरह .ये अपने भाषणों में वर्षों से देश की सेवा करते आ रहे नेताओं को भी नहीं बख्श रहे हैं .ये कॉग्रेस व् बीजेपी दोनों को खुले आम भ्रष्ट कह रहे हैं और इनका इरादा इन स्थापित पार्टियों का पूरा सफाया करने से है .ये नहीं कहते कि इन पार्टियों के भ्रष्ट नेताओं को निकाल बाहर करो -ये कहते हैं कि इन पार्टियों को भारतीय राजनीति के मानचित्र से मिटा दो .
''आप 'पार्टी का अतिवाद अभी दिल्ली झेल रही है और ये शीघ्र ही पूरे देश को अपने अतिवाद से रुबरु कराने के लिए पूरे भारत में कॉंग्रेस व् बीजेपी को बदनाम करने में लगे है .
अब जनता को स्वयं निर्णय लेना है कि आने वाले लोक सभा चुनावों में उन्हें एक व्यवस्थित सरकार देने वाली पार्टी को वोट देना है या नक्सली कट्टरता की ओर बढ़ते एक अतिवादी समूह को जिसे दिल्ली की जनता ने बहकावे में आकर अपने सिर पर चढ़ा डाला है .
शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

आये हाय तो सरकार क्या हम बना लें -कॉंग्रेस

दिल्ली विधानसभा चुनाव २०१३ परिणाम
सबसे बड़ा दल- बीजेपी ....हम विपक्ष में बैठेंगें !
दूसरा सबसे बड़ा दल -आप .....हम विपक्ष में बैठेंगें !
   आये हाय तो सरकार क्या हम बना लें -कॉंग्रेस
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

फारूख साहब शुक्रिया !!

scared now of appointing women secretaries: farooq abdullah
''महिलाओं द्वारा यौन उत्पीड़न के बढ़ते आरोपों के बाद केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने शुक्रवार को कहा कि हम लोग अब किसी भी औरत या लड़की को सेक्रेटरी बनाने से डरने लगे हैं।'' आखिर इस बयान पर इतने बवाल की जरूरत क्या है ?पुरुषों को भी अपनी बात रखने का महिलाओं जितना अधिकार है .महिलाओं को तो खुद कहना चाहिए कि ''आप क्या हमें सेक्रेटरी रखेंगें हम खुद नहीं बनना चाहते .जब पिता समान उम्र के पुरुषों का कोई यकीन नहीं तब हम क्यूँ पुरुष की सेक्रेटरी बनकर अपनी अस्मिता को खतरे में डालें !फारूख साहब शुक्रिया महिलाओं के बारे में पुरुषों के डर को सामने लाने हेतु !
शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

अब वोट अपनी देकर इन्साफ कीजिये !

narendra modi jammu rally
[Modi rally: BJP felicitates Muzaffarnagar riots accused MLAs in Agra]
पिछले दिनों बीजेपी के पी.एम्.पद के उम्मीदवार साहेब ने मुजफ्फरनगर दंगों में जनता को भड़काने के दोषी दो विधायकों को सम्मानित किया .वे दोषी थे अथवा नहीं -ये मुद्दा इस वक्त सुलझाने का नहीं है पर एक बात जो बार बार दिमाग को झनझना देने वाली है वो ये है कि -क्या ऐसे समय में जबकि मज़हबी दंगों के बाद भी जनपद में साइलेंट वार का खतरा बना हुआ है -ये सम्मान समारोह पीड़ितों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसा नहीं है ?सम्मानित होते समय उन विधायकों को एक पल के लिए भी उन आंसुओं का ख्याल नहीं आया जो दंगों में मारे गए [हिन्दू या मुस्लिम ] मासूमों के परिजनों की आँखों से अब भी बह रहे हैं .विवेकहीनता की पराकाष्ठा है ये ! भावनाओं के साथ किया गया वीभत्स खिलवाड़ और मानवता के साथ छल .हमारा नेतृत्व करने वाले ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करेंगें तो हमें भी ये कहना ही होगा -
''अब वोट अपनी देकर इन्साफ कीजिये !''
आपसे है प्रार्थना दिल साफ़ कीजिये ,
क्या कर रहे हैं आप दिल साफ़ कीजिये !
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परदे में न रखें अपने इरादों को ,
रख नेक नीयत खुद ही पर्दाफाश कीजिये !
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हम हिन्दू हैं न मुस्लिम हमको न लड़ायें ,
अब और कोई मुद्दा तलाश कीजिये !
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सत्ता मिलेगी किसको ये तिकड़में तुम्हारी ,
बस बख्श देना हमको गुनाह माफ़ कीजिये !
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'नूतन' हमारे लीडर मिसलीड कर रहे ,
अब वोट अपनी देकर इन्साफ कीजिये !
शिखा कौशिक 'नूतन'

 

शनिवार, 23 नवंबर 2013

राजनीति [भाग-चार]


उम्मीद के विपरीत माँ ने दिल कड़ा कर सब सह लिया .साहिल विस्मित था पर गौरवान्वित भी ऐसी माँ को पाकर .माँ ने न केवल खुद को सम्भाला बल्कि साहिल व् प्रिया को भी .माँ का दिया सम्बल ही था जो साहिल डैडी के सब अंतिम संस्कार संयमित होकर करता गया वरना न जिस्म में ताकत रही थी और न मन में कोई उमंग जीवन के प्रति . इस हादसे के बाद साहिल माँ व् प्रिया को अकेला छोड़कर विदेश नहीं जाना चाहता था पर सुरक्षा कारणों से उसे फिर जाना पड़ा .माँ व् प्रिया को लेकर जब भी वो भावुक हो जाता हिलेरी उसे ढांढस बंधाती. डैडी के बारे में बात करता हुआ तो वो तड़प ही उठता था तब हिलेरी उसका ध्यान किसी और तरफ ले जाती .ऐसी फ्रेंड हिलेरी की सलाह को टालना साहिल के लिए सबसे कठिन काम था पर राजनीति में आने की प्रेरणा उसे माँ से मिली थी .सत्ता को जहर मानती आई माँ ने जब देखा कि दादी व् डैडी के खून-पसीने से सींची गयी पार्टी साम्प्रदायिक पार्टियों के आगे झुकने लगी है तब उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथ में ली और राजनीति में एक नए दौर की शरुआत हुई . जनता ने भी माँ की मेहनत व् नीयत को समझा .'' बेटी विदेश की है तो क्या बहू तो हिंदुस्तान की है .'' कहकर भारतीय जनता ने अपना दो सौ प्रतिशत स्नेह माँ पर न्योछावर कर दिया .माँ ने भी तो जनता की उम्मीदों पर खरे उतरने के लिए दिन-रात एक कर दिए . जनता के इसी प्यार ने साहिल को भी भारत वापस बुला लिया .माँ के संसदीय क्षेत्र का दौरा करते समय जब एक नौ वर्षीय बालक ने साहिल का हाथ पकड़कर पूछा था -'' भैय्या जी मेरे पिता जी का सपना है कि मैं खूब पढूं इसलिए मैं दस किलोमीटर पैदल चलकर जाता हूँ .क्या आप अपने पिता जी के अधूरे सपने पूरे नहीं करेंगें ?'' उसी क्षण साहिल ने राजनीति में सक्रिय होने का अंतिम निर्णय ले लिया था .साहिल ने मन ही मन कहा -'' हिलेरी तुमने एक प्रतिशत उम्मीद भी गलत ही की है .अब मैं पूर्ण ह्रदय से जनता को समर्पित हूँ .मेरी पूँजी है ''जनता का विश्वास'' जिसे मैं कभी नहीं लुटा सकता और रही बात विपक्षियों के घिनौने आरोपों की तो जिस दिन राजनीति में आया था उसी दिन इस दिल को वज्र कर लिया था .हिलेरी तुम दादी की हत्या और डैडी की हत्या की बात करके मुझे मेरे लक्ष्य से नहीं भटका सकती हो .मैं जान चूका हूँ कि डैडी के सपने मैं राजनीति में रहकर ही पूरे कर सकता हूँ क्योंकि जनसेवा का सर्वोत्तम माध्यम राजनीति ही है .मैं तुम्हारे मेल का जवाब कभी नहीं दूंगा ...कभी नहीं !!!!!!'' ये सोचते हुए साहिल ने कुर्ते की जेब में पड़े पर्स को निकाला और उसमें लगी डैडी की फोटो को चूम लिया .
समाप्त
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

राजनीति [भाग-तीन]


मेल की आखिरी चार लाइन साहिल ने दस बार पढ़ी और विंडो को शट डाउन कर दिया .साहिल ने एक निगाह मेज पर पड़े जनता के प्रार्थना पत्रों पर डाली और फिर ऊपर छत के पंखे पर .' हिलेरी जैसी फ्रेंड साहिल के लिए और कोई नहीं हो सकती ' ये वो पिछले बीस साल से जानता है पर जब राजनीति या फ्रेंड चुनने की बात आई तब साहिल ने राजनीति को चुना .साहिल अच्छी तरह जानता था कि राजनीति में आने के निर्णय से हिलेरी के साथ उसकी फ्रेंडशिप टूट जायेगी पर राजनीति ही वो जगह है जिसमे सक्रिय होकर वो अपने डैडी को ज़िंदा महसूस कर पाता है . दादी की हत्या के बाद सहमे हुए माँ ,साहिल और प्रिया को डैडी ने ही फिर से हँसना सिखाया था .कितना घबरा गया था साहिल एक बार लॉन में खेलती हुई प्रिया की ओर राइफल लेकर जाते हुए सिक्योरिटी पर्सन को देखकर .साहिल चिल्लाता हुआ दौड़ा था उस ओर -'' डोंट किल माई सिस्टर !!!'' डैडी भी चौदह वर्षीय किशोर साहिल की चीख सुनकर अपने रूम से दौड़कर वहाँ पहुँच गए थे और आँखों ही आँखों में सिक्योरिटी पर्सन को वहाँ से जाने का इशारा किया था .साहिल डैडी से लिपट कर बहुत देर तक रोता रहा था .एक हादसा बच्चे के दिमाग पर कितना गहरा प्रभाव छोड़ जाता है ये डैडी अच्छी तरह जानते थे . साहिल व् प्रिया की पांच साल तक शिक्षा घर पर ही हुई क्योंकि साहिल के पूरे परिवार को मार डालने की धमकियाँ रोज़ आतंकवादी संगठनों की ओर से रोज़ दी जा रही थी .पांच साल बाद साहिल को विदेश पढ़ने भेज दिया गया .इसी दौरान उसकी दोस्ती हिलेरी से हुई .कॉलेज कैम्पस में एक दिन मस्ती करते हुए सब दोस्तों के साथ साहिल ये योजना बना ही रहा था कि इस बार भारत लौटने पर डैडी के साथ क्या-क्या शेयर करेगा ,उन्हें यहाँ के बारे में ये बतायेगा ...वो बतायेगा ...'' तभी अचानक सुरक्षा कारणों से साहिल को तुरंत अति सुरक्षित जगह पर ले जाया गया और वहाँ वार्डन सर ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे स्वर में कहा -'' योर फादर इज मोर .....उनकी हत्या कर दी गयी है .'' इक्कीस वर्षीय साहिल के दिल को चीरते हुए निकल गए थे ये शब्द .उसके मुंह से बस इतना निकला था -'' इज दिस ट्रू ? '' और वार्डन सरके ''यस'' कहते ही उसकी आँखों के सामने डैडी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया था और कान में उनके अंतिम शब्द '' कम सून ...'' साथ ही दिखाई दिया था माँ का चेहरा और साहिल ने तुरंत माँ से बात कराये जाने का आग्रह किया था .फोन पर संपर्क सधते ही साहिल माँ से बस इतना कह पाया था -'' माँ मैं आ रहा हूँ ...टूटना मत .'' जबकि साहिल खुद टूट कर चूर चूर हो गया था .जिन संस्मरणों को डैडी के साथ शेयर करने की प्लानिंग कुछ देर पहले वो कर रहा था उनके चीथड़े चीथड़े उड गए थे बिलकुल डैडी के बम विस्फोट में उड़े शरीर की तरह .साहिल की सिक्योरिटी इतनी कड़ी कर दी गयी थी कि हिलेरी भी ऐसे वक्त में उससे मिल नहीं पाई थी .विशेष विमान से साहिल को भारत लाया गया था और एयर पोर्ट पर खड़ी प्रिया साहिल को देखते ही उसकी ओर दौड़कर जाकर लिपट गयी थी उससे .घंटों से आँखों में रोके हुए अपने आंसुओं के सैलाब को रोक नहीं पायी थी वो .प्रिया की आँखों में आंसूं देखकर साहिल के दिल में दर्द की लहर दौड़ पड़ी थी पर उसने बड़े भाई होने का कर्तव्य निभाते हुए प्रिया को सम्भाला था .साहिल को इस वक्त केवल माँ की चिंता थी .उस माँ की जो उसके डैडी के लिए अपना घर ,देश ,संस्कृति छोड़कर भारतीयता के रंग में रंग गयी थी .जिसने अच्छी बहू ,अच्छी पत्नी व् अच्छी माँ होने की परीक्षाएं उत्तम अंकों में पास की थी .जो डैडी के हल्का सा बुखार होने पर सारी रात जगती रहती थी ...वो माँ डैडी के बिना कैसे रह पायेगी ? यही एक प्रश्न साहिल के दिल व् दिमाग में उथल-पुथल मचाये हुए था .
[जारी है ...]
शिखा कौशिक 'नूतन'
[घोषणा- -ये कहानी ,इसके पात्र सभी काल्पनिक हैं इनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है .]

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

राजनीति [भाग-दो ]


जींस के ऊपर पहने सूती कुर्ते की जेब में मेज से उठाकर मोबाइल डाला और शॉल इस तरह लपेटा कि केवल नाक के ऊपर का चेहरा दिखाई दे रहा था .''चलो आज रात का भोजन मैं तुम्हारे घर ही करूंगा .'' साहिल के ये कहते ही सुरेश के आश्चर्य की सीमा न रही .वो साहिल के पीछे पीछे कमरे से बाहर आ गया . साहिल के कमरे से बाहर आते ही एस.पी.जी. के कमांडों सतर्क हो गए और साहिल के निजी सचिव चंद्रा जी भी अपने कमरे से निकल कर तेजी से वहाँ पहुँच गए .साहिल ने चेहरे से शॉल हटाते हुए कहा -'' रिलेक्स एवरीवन ...मैं एक घंटे में लौट आउंगा .'' साहिल से असहमत होते हुए तभी वहाँ पहुंचे सिक्योरिटी ऑफिसर बोले -'' बट वी कांट एलाउ यू टू गो एलोन सर .'' साहिल उन्हें आश्वस्त करता हुआ बोला -'' ऑल राइट ...यू मस्ट डू योर ड्यूटी ...पर ध्यान रहे किसी को कोई परेशानी न हो .'' ये कहकर साहिल अपनी गाड़ी से न जाकर सुरेश की बाइक पर ही उसके पीछे बैठकर उसके घर के लिए रवाना हो लिया पर शॉल से अपना चेहरा ढकना न भूला .सुरेश के घर पर साहिल का जो स्वागत हुआ उसने साहिल का दिल जीत लिया .सुरेश के माता पिता ने साहिल को उसकी दादी ,डैडी से सम्बंधित संस्मरण सुनाये तो जैसे साहिल वापस अपने उसी बचपन में पहुँच गया जब वो डैडी के साथ यहाँ आकर धूम मचाया करता था .सुरेश के माता-पिता साहिल की दादी व् डैडी की हत्या का जिक्र करते समय फफक -फफक कर रो पड़े . साहिल की आँखें भी भर आयी .सुरेश की माता जी ने साहिल के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तो साहिल को लगा जैसे दिल्ली से माँ यही आ गयी हो .''सच माँ का स्पर्श एक सा ही होता है वो चाहे मेरी माँ हो या किसी और की '' साहिल ने मन में सोचा .सुरेश की पत्नी खाना परोस लाइ तब सबने नीचे बैठकर एक साथ भोजन किया .आज साहिल के पेट की भूख ही नहीं बल्कि आत्मा भी तृप्त हो गयी .सुरेश के घर से सबको प्रणाम कर व् फिर आने का वादा कर साहिल जब डाकबंगले की ओर रवाना हुआ तब उसके मन में एक सुकून था कि उसने दशकों पहले गांधी जी द्वारा चलाये गए छुआछूत विरोधी अभियान में एक बूँद बराबर ही सही पर योगदान तो किया .
डाकबंगले पर अपने कमरे में साहिल जब लौटा तब रात के नौ बजने आ गए थे .शॉल बैड पर फेंककर ,मोबाइल कुर्ते की जेब से निकालकर मेज पर रख साहिल फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया .इधर उधर नज़र दौड़ाई तो बाथ सोप कहीं नज़र नहीं आया .एक बात याद कर साहिल के होंठो पर मुस्कान आ गयी और उसने मन में सोचा -'' लो भाई यहाँ तो साबुन का एक टुकड़ा तक नहीं और लोग कहते हैं मैं दलित के घर से लौटकर विशेष साबुन से नहाता हूँ !!!'' केवल पानी से मुंह धोकर आईने में अपना चेहरा देखते समय साहिल के कानों में सुरेश की पत्नी के एक बात उसके कानों में गूंजने लगी -'' भैय्या जी अब तो भौजी ले आइये !'' यूं सार्वजानिक रूप से चालीस की उम्र पार कर चुके साहिल को ये बातें अच्छी नहीं लगती थी पर सुरेश की पत्नी के कहने में एक अपनापन था बिल्कुल प्रिया जैसा .प्रिया भी बहुत बार टोक चुकी थी और माँ तो इस मुद्दे पर साहिल से कुछ कहना ही नहीं चाहती थी क्योंकि वे अच्छी तरह जानती हैं अपने साहिल को . तौलिया से मुंह पोछते हुए साहिल वापस कमरे में आया और बिखरे बालों को बिना संवारे ही अपना लैपटॉप लेकर बैड पर बैठ गया .मेल खुलते ही इनबॉक्स में ''हिलेरी' का मेल देखते ही वो सुखद आश्चर्य में पड़ गया .'नौ साल बाद आज अचानक हिलेरी का मेल ' साहिल को यकीन ही नहीं हुआ .मेरा मेल मिला कहाँ से हिलेरी को ?ये सोचते हुए उसने वो मेल खोल लिया .स्पैनिश भाषा में लिखा व् अंग्रेजी में अनुवादित उस मेल का सारांश कुछ यूँ था -'' मन की बात अपनी भाषा में ही लिखी जाती है इसलिए स्पैनिश में लिख रही हूँ और मुझे पूरा यकीन हैं कि मेरे साथ रहते हुए जो स्पैनिश शब्द तुम सीख गए थे अब वे भी भूल गए होगे इसलिए नीचे इसका अनुवाद अंग्रेजी में कर दिया है .साहिल .....मुबारक हो रेप के आरोप से अदालत द्वारा बरी किये जाना .मैं ऐसे ही घिनौने आरोपों से तुम्हे बचाने के लिए राजनीति में न आने की सलाह दिया करती थी .मैं जानती हूँ कि तुम रेप जैसे घिनौने अपराध को करने की सोच भी नहीं सकते .साहिल राजनीति तुम जैसे भोले-भाले लोगों के लिए नहीं है .तुम्हारी दादी को उनके ही अंगरक्षकों ने गोलियों से भून डाला और तुम्हारे डैडी को कितनी क्रूरता से बम-विस्फोट में उड़ा दिया गया ....फिर भी तुम्हारी मॉम राजनीति में आयी और फिर तुम भी !!! तुम्हारे डैडी की हत्या पर तुम्हे तड़पते हुए मैंने देखा है .आज मैं सुकून से कह सकती हूँ कि मैंने तुम्हे सही सलाह दी थी ...विपक्षियों की गन्दी सोच 'रेप' तक जा पहुँचती है और तुम जैसा शालीन व्यक्ति अपने को पाक-साफ़ घोषित करने के लिए अदालतों का चक्कर लगाता है .तुम ये सब कैसे झेलते हो मुझे आश्चर्य होता है !!...यदि अब भी एक प्रतिशत भी तुम राजनीति छोड़कर यहाँ वेनेजुएला आने के बारे में सोचने को तैयार हो तभी इस मेल का जवाब देना ....तुम्हारा मेल तुम्हारी ऑफिशियल वेबसाइट से लिया है ......अलविदा ''
[जारी है ]
शिखा कौशिक 'नूतन'
[घोषणा-ये कहानी ,इसके पात्र सभी काल्पनिक हैं इनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है .]

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

राजनीति [भाग-एक]


शाम ढलने लगी थी .आधा नवम्बर बीत  चुका था .सुहानी हवाओं में बर्फ की ठंडक घुलने लगी थी .शॉल ओढ़कर साहिल खिड़की से बाहर के नज़ारों को देखने लगा .डैडी के साथ कितनी ही बार उनके  इस संसदीय क्षेत्र से सांसद रहते हुए साहिल ने इसी सरकारी डाकबंगले की खिड़की से रोमांचित होकर ये नज़ारे देखे थे .दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली और उस पर संध्या की श्यामल चुनरी की छाया . साहिल की आँखों में एक सूनापन थोड़ी नमी के साथ उतर आया .ऐसा सूनापन साहिल ने पहली बार अपने डैडी की आँखों में तब देखा था जब दादी के अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी थी और डैडी के दादी की चिता को मुखाग्नि देने के बाद साहिल रोते हुए डैडी से लिपट गया था .चौदह साल के साहिल ने डैडी की आँखों में जो सूनापन उस समय देखा था वो ही उसके दिल में उतर गया था और जब तब उसकी आँखों में भी उतर आता है .साहिल ने आँखों में आयी नमी को शॉल के एक कोने से पोंछा और सरकारी डाकबंगले के उस कमरे में खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठ गया .वही दीवार से सटी मेज पर फैले हुए कागजों को एकत्रित कर सलीके से क्रम में लगाया .ये कागज इस संसदीय क्षेत्र के दौरे के दौरान जनता द्वारा अपने सांसद साहिल को अपनी समस्याओं के समाधान हेतु दिए गए प्रार्थना पत्र थे .साहिल ने समस्याओं की गम्भीरता के आधार पर उनका ऊपर-नीचे का क्रम निर्धारित किया और मेज पर रखे अपने मोबाइल में आये मैसेज चैक किये .दो मैसेज छोटी बहन प्रिया के व् एक माँ का था .साहिल जानता है कि माँ व् बहन दोनों को ही हर पल उसकी चिंता लगी रहती है .साहिल ने दोनों को ही ''आई एम् ओ.के. एंड फाइन '' का मैसेज किया और दीवार पर लगी घडी से टाइम देखा .सात बजने आ गए थे .संध्या की श्यमल चुनरी अब रात की काली चादर बनकर खिड़की के दिखने वाले सारे नज़ारों को पूरी तरह ढक चुकी थी .साहिल ने कुर्सी से खड़े होते हुए खिड़की के किवाड़ बंद करने को ज्यों ही हाथ बढ़ाया तभी उसके कमरे के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी .साहिल खिड़की बंद करता हुआ ही बोला -'' कम इन प्लीज़ '' .ये डाक बंगले का ही कर्मचारी था .उसने आते ही साहिल को टोकते हुए रोका -'' अरे भैय्या जी ...आप रहने दीजिये ..हम बंद कर देंगें .'' साहिल मुस्कुराता हुआ बोला -''लो हो भी गई बंद ..!!'' साहिल के पास पहुँचते ही वो कर्मचारी साहिल के चरण-स्पर्श के लिए झुका .साहिल ने उसके कंधे पकड़ते हुए उसे रोका और बोला -'' अरे ये क्या करते हो भाई ?'' वह कर्मचारी गदगद होता हुआ बोला -'' नहीं भैया जी रोकिये मत पर आप हमें मत छुइये ...हम चमार हैं ..आप नहीं जानते बड़ी जात के लोग भले ही मुसलमान से अपने दुधारू पशुओं का दूध निकलवा लें पर हमसे परहेज़ करते हैं ...और तो और अपने बच्चों से कहते हैं भले ही किसी भी जात की लड़की से प्रेम ब्याह कर लेना पर चमार से नहीं ...और आप भैय्या जी हमें हाथ लगाते हैं !!!'' साहिल के चेहरे की मुस्कराहट क्षोभ में पलट गयी पर वो खुद के भावों को नियंत्रित करता हुआ बोला -'' छोडो ये सब ..क्या नाम है तुम्हारा ..नई नियुक्ति हो शायद ?'' साहिल के इस प्रश्न पर वो कर्मचारी विनम्रता के साथ उत्तर देता हुआ बोला -'' हां भैय्या जी ...आपके ही संसदीय क्षेत्र का हूँ ...सुरेश नाम है हमारा ..भैय्या जी आपके दर्शन करके आज हमारा जन्म सफल होई गया .'' साहिल के चेहरे पर मुस्कराहट वापस आ गयी और वो चुटीले अंदाज़ में बोला -'' तुम्हारा जन्म तो सफल हो गया पर मेरा कैसे होगा !! एक बात बताओ तुम्हारे घर रात का भोजन तैयार हो गया होगा ?'' सुरेश बोला -''हां भैय्या जी ..पर आप ये क्यूँ पूछते हैं ..कही ...'' साहिल उसकी बात पूरी करता हुआ बोला '' हाँ ..बिलकुल सही ...'' साहिल ने बैड के पास पड़ी अपनी चप्पलें पहनी .
[जारी है ...]
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

गांधी परिवार चौका या छक्का नहीं !


श्री नरेंद्र मोदी जिस दिन से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुए हैं उस दिन से उनका ध्यान केवल गांधी परिवार के खिलाफ ज़हर उगलने में लगा हुआ है जैसे उनके समर्थक ''मोदी बनाम गांधी परिवार क्रिकेट मैच'' देखने बैठे हो और मोदी जी गांधी परिवार के खिलाफ जहरीले बयान रुपी चौके-छक्के लगा कर तालियां बटोर रहे हो .गांधी परिवार के खिलाफ ज़हर उगलने वाले सुब्रमण्यम स्वामी से नबर वन का स्थान छीनने में लगे मोदी जी शालीनता की सीमायें पार कर गांधी परिवार की प्रतिष्ठा को कोई नुकसान पहुंचा पाएं या नहीं पर अपनी विकास-पुरुष की छवि को उन्होंने धुल-धूसरित कर डाला है .केंद्र से भेजे गए धन के लिए यदि राहुल जी ये कहते हैं कि ''हमने धन भेजा राज्य को '' तो क्या गलत है ? मोदी जी भी शान से कहते हैं ''हमने गुजरात का ये विकास कर दिया -वो विकास कर दिया''-क्या उन्होंने अपने चाचा जी के धन से ये विकास कर दिया या उनके ताऊ जी ने अपनी मेहनत से ये विकास कर दिया .मेहनत और धन दोनों भारतीय जनता के हैं ''भारतीय जनता पार्टी '' के नहीं . किसी समय प्रमोद महाजन भी गन्दी भाषा का इस्तेमाल कर गांधी परिवार को जनता की नज़रों में गिराने का प्रयास कर चुके हैं पर आज उनका तो नामों निशान भी नहीं और उनके शहजादे राहुल महाजन क्या-क्या गुल खिला रहे हैं ये सब को मालूम हैं .साफ़ है राहुल गांधी जी के हर शब्द को पकड़कर एक तूफ़ान उठाने वाले मोदी जी अपनी ही गरिमा के साथ गन्दा खेल खेल रहे हैं और सबसे ज्यादा अपना ही नुकसान कर रहे हैं .
शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 13 नवंबर 2013

मुखालिफ करते हैं एतराज़ इनके मुस्कुराने पर !


बड़ी पाबंदियां हैं इन लबों के मुस्कुराने पर ,
मुखालिफ करते हैं एतराज़ इनके मुस्कुराने पर !
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मेरी खामोशियाँ भी चीखती हैं इस ज़माने में ,
हूँ मैं पत्थर वही जो लगता है जाकर निशाने पर !
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मुझे है फख्र मुझमें आज तक मक्कारियाँ नहीं ,
नहीं होता हूँ शर्मिंदा तेरे खिल्ली उड़ाने पर !
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मुझे आदत नहीं मखमली फूलों से मैं खेलूँ ,
नहीं होगी शिकायत आपके कांटें चुभाने पर !
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मुझे सुकून मिलता हर नए जख्म से 'नूतन' ,
बहुत बेचैन हो उठता हूँ मैं मरहम लगाने पर !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 10 नवंबर 2013

हाँ राहुल जी में बहुत कमजोरियां हैं क्योंकि ..


हाँ राहुल जी में एक नेता के तौर पर बहुत कमजोरियां हैं क्योंकि ..
* वे पद के पीछे पागल नहीं हैं जबकि आज कोई भी नेता ऐसा नहीं है जो पद प्राप्ति की लालसा के बिना जनसेवा करता हो !
* वे अपने विरोधियों के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते जबकि विरोधी पक्ष लगातार उनके लिए 'बुद्धू ' ,'पप्पू ' , 'शहज़ादा ' आदि आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करता है .
*वे जनता के साथ अपने दिल की बात साझा करते हैं जबकि नेताओं का तो दिल ही नहीं होता .
* वे अपनी ही पार्टी के गलत निर्णय के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं ....भला ऐसा भी कोई नेता होता है वरना अडवानी जी से लेकर सुषमा जी तक मोदी को पी.एम्. पद प्रत्याशी बनाये जाने पर मुंह बंद करके क्यों बैठ जाते हैं ?...वे नेता हैं !!!
*वे व्यवस्था को बदलने की बात करते हैं ..जबकि नेता तो चाहते हैं वही घिसी-पिटी व्यवस्था चलती रहे .
और सबसे बड़ी कमजोरी
वे सच बोलते हैं ....जबकि नेताओं को सच बोलने की सख्त मनाही है . इसीलिए राहुल जी बुद्धू हैं ,पप्पू हैं और शहजादे हैं !!!


शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 4 नवंबर 2013

मोदी के व्यव्हार में घमंड व् .गुरूर


क्या आपने श्री मोदी जी के व्यव्हार में घमंड व् .गुरूर का अवलोकन नहीं किया है !उनका अहम् हर बात में झलकता है -
* देश के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू की योगयता पर सवाल खड़े करते हैं ?
*वे गुजरात में तरक्की को मात्र अपनी कोशिशों का नतीज़ा मानते हैं कभी सहयोगियों का जिक्र तक नहीं करते .
*नकली लाल किला बनवाकर जनता द्वारा चुने गए वर्तमान प्रधानमंत्री से स्वयं की तुलना ही नहीं करते बल्कि उनसे स्वयं को श्रेष्ठ भी घोषित करते हैं .
*खुद को पी.एम्. प्रत्याशी बनाये जाने पर ये नहीं कहते कि सुषमा जी को प्रत्याशी बनाया जाना चाहिए .जब सोनिया जी के सामने बीजेपी को कोई उम्मीदवार खड़ा करना था बेल्लारी में तब सुषमा जी को बलि का बकरा बनाया जाता है पर जब लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी चुना जाना हो तब एक राज्य के कलंकित मुख्यमंत्री को चुन लिया जाता है और वो स्वयं को ही सबसे योग्य मानकर अन्य अनुभवी व् प्रखर , राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को इस पद के काबिल कहकर शालीनता का परिचय नहीं देते .जब अपने से अधिक योग्य अपनी ही पार्टी के नेताओं के प्रति उनका ये व्यवहार है तब मजबूर जनता के साथ कैसी शालीनता दिखा सकते हैं श्री मोदी ?
* अपने से बीस साल छोटे राहुल जी से हर पल हर बात में अपनी तुलना करना .राहुल जी के प्रति अलोकतांत्रिक शब्दों का प्रयोग करना ...इस घमंड के साथ देखो हम जो चाहे तुम्हें कह सकते है ....हमारा कर क्या सकते हो तुम ?
श्री मोदी का ये आचरण केवल भारतीय संस्कृति के विरूद्ध आचरण करने वालों को अच्छा लग सकता . मात्र इस आधार पर कि धर्म के नाम पर हिंदुओं को असुरक्षा की भावना से भरकर ज्यादा से ज्यादा वोट केवल श्री मोदी हो बीजेपी को दिला सकते हैं ,श्री मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना डाला गया .ये तो वक्त बतायेगा कि बीजेपी का ये निर्णय कितना सही साबित होगा पर कुछ परिणाम तो दिखने ही लगे हैं .श्री मोदी के दायें हाथ अमित शाह को उत्तर प्रदेश का बीजेपी प्रभारी बनाये जाते ही मुज़फ्फरनगर में दोनों समुदायों में असुरक्षा की भावना घर कर चुकी है .देश को बीजेपी के इस गलत निर्णय का कितना नुकसान भुगतना होगा ये भविष्य के गर्भ में है .
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !

Live: PM rightly said Sardar Patel was truly secular, says Modi
नफरत दिल में भरते ये ; ज़हरीले अंगारें हैं ,
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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कुटिल स्वार्थ -सिद्धि हेतु लौह पुरुष को पूज रहे ,
प्रतिमा लोहे की बना बना अवसरवादी कूद रहे ,
ये चले लूटने यश उनका जो जनता के प्यारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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खून सने हाथों में 'नूतन' खिला कमल का फूल कभी ?
अभिमानी कपट वेश धर कर बने राम के भक्त सभी ,
किस किस का नाम बतायें हम रावण सारे के सारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
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गांधी को गाली देते हैं ; नेहरू को कहते चरित्र-हीन ,
कहते खुद को हैं राष्ट्र भक्त पर निज भक्ति में रहें लीन,
इन्हें जनता सबक सिखाती जब दिख जाते दिन में तारे हैं !
नेहरू के निंदक हैं ये और गांधी के हत्यारे हैं !
शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

दिल्ली में त्यौहार का जोश हो गया ठंडा !


[सन्दर्भ -Harsh Vardhan is BJP's Delhi CM candidate ]
हर्षवर्धन को हर्ष विजय की हो गयी हार ,
अब कैसे मन पायेगा दिल्ली में त्यौहार ?
दिल्ली में त्यौहार का जोश हो गया ठंडा
फिर से जीत पे कस गया शीला जी का पंजा !
शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

बाबा रामदेव समझें विनम्र व् नामर्द में अंतर

बाबा रामदेव की कोई भाषिक मर्यादा है या नहीं .देश के सम्मानीय व्यक्तियों के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग उन्हें सबकी नज़रों में गिरा रहा है -
''रामदेव ने पीएम को कहा 'नामर्द', राहुल के बारे में बोले- मैडम का शहजादा कुछ ज्‍यादा ही कूद रहा''
योग गुरु के रूप में प्रसिद्धि पाने वाले बाबा रामदेव ने अपने अनर्गल बयानों से ये साबित कर दिया है कि हर व्यक्ति राजनीति में आने लायक नहीं होता .राजनीति में आपको विपक्षियों के प्रति भी शिष्ट भाषा का प्रयोग करना होता है .पिछले दिनों राहुल जी ने विनम्रता के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को यह सन्देश दिया था कि'' भाषा की मर्यादा को बनाये रखा जाये .'' राहुल जी स्वयं भी इस बात का ध्यान रखते हैं इसीलिए दागी सांसदों को बचाने के लिए लाये गए अध्यादेश पर दी गयी अपनी साहसपूर्ण प्रतिक्रिया में प्रयोग किये गए अपने शब्दों पर उन्होंने स्वीकार किया- As an afterthought, I agree it was a mistake to use harsh words but I have a ... Rahul was at pains to explain that his comment was not aimed at Prime ... My relations with the prime minister are based on fundamental respect ...-''
बाबा रामदेव को आवश्यकता है राहुल जी से शिष्ट आचरण सीखने की न कि उनकी अनर्गल आलोचना करने की .बाबा रामदेव को डॉ.मनमोहन सिंह जी के प्रति प्रयोग किये अमर्यादित शब्दों के लिए तत्काल माफ़ी माँगनी चाहिए और विनम्र व् नामर्द में अंतर समझना चाहिए .
शिखा कौशिक 'नूतन

रविवार, 22 सितंबर 2013

ऐसे बाबाओं को कैसे अपना भारत दें सौंप ?


[सन्दर्भ-सोनिया गांधी के इशारे पर मुझे फंसाया गयाः रामदेव]



रामदेव की बुद्धि का कहाँ हो गया लोप ,

लगा रहे हैं 'मैडम' पर रोज नए आरोप ,

ऐसे बाबाओं को कैसे अपना भारत दें सौंप ,

बेहतर है इससे पहले चाकू लें अपने घोंप!!



शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 16 सितंबर 2013

मुख्यमंत्री शर्मिंदा -लघु कथा

''...देखो बेटा ...ध्यान रखना अपना ....एक मुख्यमंत्री होने के नाते तुम जा तो रहे हो पर सांप्रदायिक आग में झुलसे हुए क्षेत्र में तुम्हारे जाने से मैं बहुत चिंतित हूँ ....चाहो तो अपनी सुरक्षा में और कमांडों लगवा लो . बहुत तनाव है वहां उस इलाके में ...जनता गुस्से में हैं .सुरक्षा एजेंसी ने भी तुम्हारे लिए खतरा बताया है .दंगा-पीड़ितों में रोष है .......खैर ...सुरक्षा घेरा तोड़कर मत मिलना किसी से ...अब और क्या कहूं ..जब तक लौट कर सही-सलामत नहीं आते मेरे दिल को सुकून नहीं आएगा !'' ये कहते कहते मुख्यमंत्री जी के पिता जी उनके सिर पर हाथ फेरकर लम्बी उम्र का आशीर्वाद देकर वहां से चल दिए .मुख्यमंत्री जी ने उनके जाने के बाद आँखों में आई नमी पोंछते हुए एक लम्बी साँस ली और मन में सोचने लगे -'' पिताजी मुझे ..मेरी सुरक्षा को लेकर कितने चिंतित हैं !....पर दंगा प्रभावित इलाकों में कितने ही पिता अपने बेटों को खो चुके हैं उनके दिल को कैसे सुकून आ पायेगा भगवान जाने ! बिना किसी सुरक्षा के मौत के साये में रोजी-रोटी कमाने के लिए जिनके बेटे घर से खेतों पर काम हेतु जा रहे हैं उनके पिता कैसे ले पाते होंगें उनके लौटकर आने से पहले सुकून की साँस ?...ये सच ही है अगर मैं एक पिता की तरह राज्य की जनता को बेटा मानकर उनके जान-माल के प्रति चिंतित रहता तो इतनी मासूम जिंदगियों को तबाह करने की ग्लानी से अपने आप से ही शर्मिंदा न होता !'' ये सोचते-सोचते मुख्यमंत्री जी अपने कमरे से निकल कर साम्प्रदायिक दंगों से प्रभावित क्षेत्रों के दौरे हेतु तैयार कारों के काफिले की ओर बढ़ चले .



शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 8 सितंबर 2013

लाल किले से दे रहे मोदी थे तक़रीर


लाल किला 



लाल किले से दे रहे मोदी थे तक़रीर ,
हाथ हिलाकर अभिवादन  करते  हुए  अधीर  ,
हिले  बहुत  ही  जोश में    मोदी जी  के  हाथ ,
थर्माकोल  का  लाल  किला  गिरा  उन्ही  के  साथ  !!

शिखा  कौशिक  'नूतन  '

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