कभी दूरदर्शन पर अलका लम्बा जी को कॉंग्रेस के समर्थन में विपक्षियों से जोरदार बहस करते देखा था और आज उनके कॉंग्रेस छोड़कर ''आप पार्टी' में शामिल होने की खबर पढ़ी और पढ़ा साथ ही उनका बयान कि -''"मैंने कई बार राहुल गांधी से मिलने की कोशिश की। पिछले तीन साल से मैं यहीं कर रही थी। कई चिट्ठी भी लिखीं, लेकिन किसी ने इस पर गौर नहीं किया।" आखिर क्यों एक पार्टी छोड़ते ही इस तरह के व्यर्थ बयान दिए जाते हैं .आप शालीनता के साथ छोड़ दीजिये यदि आप को किसी पार्टी में घुटन महसूस होने लगी है तो ....पर पार्टी छोड़ते ही उस पार्टी के नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करना कहाँ तक उचित है ? ये केवल अपने इस कदम को न्यायोचित ठहराने का एक प्रयास मात्र है कि हम तो पार्टी के बहुत वफादार थे पर नेतृत्व ही हमारी उपेक्षा करता रहा ....क्यूँ देते हैं इतने सस्ते बयान ! वास्तविकता से सब रुबरु हैं ...आप अवसरवादी हैं जिस पार्टी को सत्ता में आते देखते हैं उसकी ओर दौड़ लेते हैं और तुर्रा ये कि ''टीवी चैनल से बातचीत में अलका ने कहा, "मेरे लिए देश सबसे पहले है, देश की जनता सबसे पहले है। लेकिन इस बात का अफसोस रहेगा कि पिछले 15 साल मैं कांग्रेस के लिए काम करती रही, जबकि मुझे उसे देश के लिए खर्च करना चाहिए था।" आप जाइये ...शौक से जाइये पर गरिमा के साथ जाइये ...अपने हितों को देश-सेवा का नाम न दें ....राहुल जी को कटघरे में खड़ा न करें जो इंसान दिन-रात देश की समस्याओं के समाधान के लिए खुद के सपनों को तिलांजलि दे सकता है उस पर आपके द्वारा लगाये गए इल्जाम आपको केवल गद्दार के श्रेणी में खड़ा कर सकते हैं -
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नहीं वे अपने जो साथ छोड़ देते हैं ,
पाने को ताजमहल घर अपना छोड़ देते हैं !
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आते जिसके सहारे गद्दार साहिलों तक ,
पार आते ही कश्ती खुद ही डुबों देते हैं !
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बड़े मासूम बनकर तोहमतें लगाते हैं ,
मिलते ही मौका छुरा आप घोंप देते हैं !
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हर एक घर में पल में रहे हैं सांप ज़हरीले ,
दूध पीते हैं और डंक चुभो देते हैं !
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खेलकर जिसमे बड़े होते हैं बच्चे 'नूतन'
नया घर लेने को उसे आप बेंच देते हैं !
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
ekdam sahi kaha aapne .
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