चेले और शागिर्द

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

हर मर्ज़ की दवा हैं


हर मर्ज़ की दवा हैं ,ये सेर भी सवा हैं ,
 ठंडा पड़ा है चूल्हा उल्टा पड़ा तवा है ,
दो -दो जगह से लड़ता  क्यूँ इतना ये डरा है ,
क्या हो चुकी इनकी वो हवा भी हवा है !

शिखा कौशिक 'नूतन'