मंगलवार [दिनाँक -१३ जनवरी २०१५] को आयोजित होने वाली कॉंग्रेस कार्यसमिति की महत्वपूर्ण बैठक में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारणीय मुद्दा होगा -वह होगा पार्टी के नेतृत्व सम्बन्धी लिए जाने वाले निर्णय का .एक ओर कानपुर में पार्टी के प्रमुख नेता राजीव शुक्ला जी ने बयान दिया है कि पार्टी नेतृत्व में क्या बदलाव किया जाये इस पर निर्णय केवल सोनिया जी व् राहुल जी लेंगें वहीं पार्टी के अनेक कार्यकर्त्ता प्रियंका गांधी जी को पार्टी की कमान सौपने की मांग लेकर जोशीला अभियान चला रहे है . अब प्रश्न यह उठता है कि अपने सबसे बुरे दौर से गुजरती हुई देश की सबसे बड़ी पार्टी की नैय्या पार लगाने में कौन सक्षम है ? कसौटी पर यदि राहुल जी को खरा बताया जाता है तब इसमें किसी भी प्रकार के मतभेद की सम्भावना नहीं .चुनावों में हार-जीत के लिए केवल राहुल जी को जिम्मेदार ठहराना तर्क-संगत नहीं . हमने देखा कि चुनावों के पास आते ही दस साल से कितने ही सत्ता का सुख भोग रहे माननीय नेतागण पार्टी को ठेंगा दिखाकर अपने घर जाकर बैठ गए और राहुल जी व् सोनिया जी देश भर में रैलियां कर पार्टी की नीतियों व् कार्यों का प्रचार अकेले दम पर करते रहे . इसीलिए हार का ठीकरा भी उनके सिर पर फोड़ दिया गया .यदि आप जनता में जाकर पूछें तो जनता का गुस्सा उन निठल्ले नेताओं के प्रति था न कि सोनिया जी व् राहुल जी के प्रति .राहुल जी ने गरीब जनता ,किसानों , महिलाओं के हितों को ध्यान में रखकर पिछले दस सालों में बहुत काम किया है .वे झूठी आशाएं नहीं बँधातें . वे अनुशासित तरीके से देश की व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहते हैं .वे केवल अपने को प्रोडक्ट बनाकर प्रचारित नहीं करते .वे सबके सहयोग से देश की तरक्की की बात करते हैं . उनको पार्टी यदि अध्यक्ष पद पर सुशोभित करना चाहती है तो इससे बढ़कर हर्ष की बात नहीं हो सकती है .प्रियंका जी को तो अभी पार्टी में आकर संगठन में दस साल का योगदान देना चाहिए और राहुल जी के नेतृत्व में पार्टी को मजबूत बनाने में सहयोग करना चाहिए . एक दम से उन्हें पार्टी-अध्यक्ष बना देना उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं होगा . पार्टी-कार्यकर्ताओं को भी इस हकीकत को जानना व् समझना चाहिए . जोश में होश न खोएं .
शिखा कौशिक 'नूतन'
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