चौदह वर्षीय राजू दौड़ता हुआ अन्दर घर में गया .उसकी अम्मा चूल्हे पर तवा रखकर रोटी सेंक रही थी .राजू हाँफते हुए बोला -''अम्मा बाहर नेता जी आये हैं .कहते हैं लोहा दे दो ....कहाँ से दूँ लोहा ?'' राजू की बात सुनते ही उसकी अम्मा के तन-बदन में आग लग गयी .भड़कते हुए बोली -''आ दूँ उसे लोहा !'' ये कहकर सिकती रोटी तवे से अधपकी ही उतार दी और तवा हाथ में लेकर घर के बाहर खड़े नेता जी के पास पहुंचकर बोली -इब किस -किसका सत्यानाश करवाओगे लल्ला .बरसों पहले तुम्हारे कहे पर ईट लेकर गया था राजू का ताऊ . बेचारा बेमौत मारा गया ...इब तक तो राम जी का मंदिर बना न तुम पे लल्ला और मेरी बेवा जेठानी घरो - घरो फिरे है बर्तन मांजती ,,,पहले लिख के दे दो मूरत बनाके दिखाओगें .. तब दूँगी लोहा.'' राजू की अम्मा की बात सुनकर नेता जी का दिल धक् सा रह गया .मन में सोचा -कौन ले इस फौलादी औरत से लोहा ?'' उदास स्वर में बोले -''लिखकर तो न देवेंगें .अच्छा राम राम !'' ये कहकर नेता जी वहां से निकल लिए !
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
.बेहतरीन अभिव्यक्ति .आपकी कहानी मन को छू गयी आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"
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