बड़ी पाबंदियां हैं इन लबों के मुस्कुराने पर ,
मुखालिफ करते हैं एतराज़ इनके मुस्कुराने पर !
.............................................................
मेरी खामोशियाँ भी चीखती हैं इस ज़माने में ,
हूँ मैं पत्थर वही जो लगता है जाकर निशाने पर !
........................................................................
मुझे है फख्र मुझमें आज तक मक्कारियाँ नहीं ,
नहीं होता हूँ शर्मिंदा तेरे खिल्ली उड़ाने पर !
.............................................................
मुझे आदत नहीं मखमली फूलों से मैं खेलूँ ,
नहीं होगी शिकायत आपके कांटें चुभाने पर !
.....................................................
मुझे सुकून मिलता हर नए जख्म से 'नूतन' ,
बहुत बेचैन हो उठता हूँ मैं मरहम लगाने पर !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
मुझे सुकून मिलता हर नए जख्म से 'नूतन' ,
बहुत बेचैन हो उठता हूँ मैं मरहम लगाने पर !!
VERY RIGHT AND NICE
एक टिप्पणी भेजें