'अल्लाह ' है लबों पर ; दिल में तो है शैतान ,
तुम ना खुदा के बन्दे ; ना तुम हो मुसलमान !
नफरतों की आग में जला रहे अमन ,
हैवान बन चुके हो तुम बेचकर ईमान !
जिस वतन ने दी तुम्हे सहूलियत तमाम ,
जायज़ नहीं लगता तुम्हे करना उसे सलाम !
मज़हब नहीं सिखाता गद्दारी वतन से ,
क्यूँ कर रहो बेवज़ह 'इस्लाम' को बदनाम !
अब वक्त आ गया है नादानी छोड़ दो ,
अपने वतन पे मर मिटो 'अल्लाह' का है पैगाम !
शिखा कौशिक 'नूतन'
3 टिप्पणियां:
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने .आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .
सत्य और असत्य का संघर्ष हर दौर में और हर क़ौम में होता रहा है और हो रहा है।
इसीलिए किसी क़ौम को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि इसके तो सारे ही लोग देवता या फ़रिश्ते हैं या सारे ही राक्षस या शैतान हैं।
हरेक का ज्ञान और कर्म अलग अलग है। हरेक को उसके ज्ञान और कर्म के आधार पर ही पहचानना चाहिए।
जो आदमी किसी पूरी क़ौम को दुष्ट कहता है। वास्तव में वह शैतान के असर में है। हमें जन साधारण को शैतान के बुरे असर बचाना होगा और उन्हें नेकी का सीधा रास्ता दिखाना होगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी है, अगर हम वास्तव में इंसान हैं।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/shaitan1
सटीक पंक्तियाँ !!
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