भारत की इस बहू में दम है -सोनिया गाँधी
२१ मई १९९१ की रात्रि को जब तमिलनाडु में श्री पेराम्बुदूर में हमारे प्रिय नेता राजीव गाँधी जी की एक बम विस्फोट में हत्या कर दी गयी वह क्षण पूरे भारत वर्ष को आवाक कर देने वाला था .हम इतने व्यथित थे.... तब उस स्त्री के ह्रदय की वेदना को समझने का प्रयास करें जो अपना देश ..अपनी संस्कृति और अपने परिवारीजन को छोड़कर यहाँ हमारे देश में राजीव जी की सहगामिनी -अर्धांगिनी बनने आई थी .मैं बात कर रही हूँ सोनिया गाँधी जी की .निश्चित रूप से सोनिया जी के लिए वह क्षण विचिलित कर देने वाला था -
''एक हादसे ने जिंदगी का रूख़ पलट दिया ;
जब वो ही न रहा तो किससे करें गिला ,
मैं हाथ थाम जिसका आई थी इतनी दूर ;
वो खुद बिछड़ कर दूर मुझसे चला गया .''
सन १९८४ में जब इंदिरा जी की हत्या की गयी तब सोनिया जी ही थी जिन्होंने राजीव जी को सहारा दिया पर जब राजीव जी इस क्रूरतम हादसे का शिकार हुए तब सोनिया जी को सहारा देने वाला कौन था ?दिल को झंकझोर कर रख देने वाले इस हादसे ने मानो सोनिया जी का सब कुछ ही छीन लिया था .इस हादसे को झेल जाना बहुत मुश्किल रहा होगा उनके लिए .एक पल को तो उन्हें यह बात कचोटती ही होगी कि-''काश राजीव जी उनका कहना मानकर राजनीति में न आते ''पर ....यह सब सोचने का समय अब कहाँ रह गया था ?पूरा देश चाहता था कि सोनिया जी कॉग्रेस की कमान संभालें लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया .२१ वर्षीय पुत्र राहुल व् 19 वर्षीय पुत्री प्रियंका को पिता की असामयिक मौत के हादसे की काली छाया से बाहर निकाल लाना कम चुनौतीपूर्ण नहीं था .
अपने आंसू पीकर सोनिया जी ने दोनों को संभाला और जब यह देखा कि कॉग्रेस पार्टी कुशल नेतृत्व के अभाव में बिखर रही है तब पार्टी को सँभालने हेतु आगे आई .२१ मई १९९१ के पूर्व के उनके जीवन व् इसके बाद के जीवन में अब ज़मीन आसमान का अंतर था .जिस राजनीति में प्रवेश करने हेतु वे राजीव जी को मना करती आई थी आज वे स्वयं उसमे स्थान बनाने हेतु संघर्ष शील थी .क्या कारण था अपनी मान्यताओं को बदल देने का ?यही ना कि वे जानती थी कि वे उस परिवार का हिस्सा हैं जिसने देश हित में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया .कब तक रोक सकती थी वे अपने ह्रदय की पुकार को ? क्या हुआ जो आज राजीव जी उनके साथ शरीर रूप में नहीं थे पर उनकी दिखाई गयी राह तो सोनिया जी जानती ही थी .
दूसरी ओर विपक्ष केवल एक आक्षेप का सहारा लेकर भारतीय जनमानस में उनकी गरिमा को गिराने हेतु प्रयत्नशील था .वह आक्षेप था कि-''सोनिया एक विदेशी महिला हैं '' . सोनिया जी के सामने चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ थी .यह भी एक उल्लेखनीय तथ्य है कि जितना संघर्ष सोनिया जी ने कॉग्रेस को उठाने हेतु किया उतना संघर्ष नेहरू-गाँधी परिवार के किसी अन्य सदस्य को नहीं करना पड़ा होगा .
सोनिया जी के सामने चुनौती थी भारतीयों के ह्रदय में यह विश्वास पुनर्स्थापित करने की कि -''नेहरू गाँधी परिवार की यह बहू भले ही इटली से आई है पर वह अपने पति के देश हित हेतु राजनीति में प्रविष्ट हुई है ''.यह कहना अतिश्योक्ति पूर्ण न होगा कि सोनिया जी ने इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि अपनी मेहनत व् सदभावना से विपक्ष की हर चाल को विफल कर डाला .लोकसभा चुनाव २००४ के परिणाम सोनिया जी के पक्ष में आये .विदेशी महिला के मुद्दे को जनता ने सिरे से नकार दिया .सोनिया जी कॉग्रेस [जो सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आया था ]कार्यदल की नेता चुनी गयी .उनके सामने प्रधानमंत्री बनने का साफ रास्ता था पर उन्होंने बड़ी विनम्रता से इसे ठुकरा दिया .कलाम साहब की हाल में आई किताब ने विपक्षियों के इस दावे को भी खोखला साबित कर दियाकी कलाम साहब ने सोनिया जी को प्रधानमंत्री बनने से रोका था .कितने व्यथित थे सोनिया जी के समर्थक और राहुल व् प्रियंका भी पर सोनिया जी अडिग रही .अच्छी सरकार देने के वादे से पर वे पीछे नहीं हटी इसी का परिणाम था की २००९ में फिर से जनता ने केंद्र की सत्ता की चाबी उनके हाथ में पकड़ा दी .
विश्व की जानी मानी मैगजीन ''फोर्ब्स ''ने भी सोनिया जी का लोहा माना और उन्हें विश्व की शक्तिशाली महिलाओं में स्थान दिया -
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Sonia Gandhi
President
सोनिया जी पर विपक्ष द्वारा कई बार तर्कहीन आरोप लगाये जाते रहे हैं पर वे इनसे कभी नहीं घबराई हैं क्योकि वे राजनीति में रहते हुए भी राजनीति नहीं करती .वे एक सह्रदय महिला हैं जो सदैव जनहित में निर्णय लेती है .मनरेगा ,सूचना का अधिकार व् खाद्य-सुरक्षा बिल उनकी ही प्रेरणा से संसद में पास हुए .उनके कुशल नेतृत्व में सौ करोड़ से भी ज्यादा की जनसँख्या वाला हमारा भारत देश विकास के पथ पर आगे बढ़ता रहे बस यही ह्रदय से कामना है .आज महंगाई ,भ्रष्टाचार के मुद्दे लेकर विपक्ष सोनिया जी को घेरकर २०१४ के लोक-सभा चुनाव में विजय श्री प्राप्त करने के फेर में है पर विजय श्री उसकी ही होगी जो दिल से देश को एकता के सूत्र में बांधे रखना चाहता है .न कि हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर वोट की राजनीति करता है .सोनिया जी के साथ पूरा हिंदुस्तान है .सोनिया जी अपने विपक्षियों से यही कहती नज़र आती हैं-
''शीशे के हम नहीं जो टूट जायेंगें ;
फौलाद भी पूछेगा इतना सख्त कौन है .''
वास्तव में सोनिया जी के लिए यही उद्गार ह्रदय से निकलते हैं -''भारत की इस बहू में दम है .''
शिखा कौशिक 'नूतन'